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फिर बोले सन्नाटे सूने
शायद याद किया है तूने
फिर आँखों से नींद चुरा ली
कोरे कागज़ की ख़ुशबू ने
देखा तो झाड़ी को देखा
कातर आँखों से आहू ने
रूप उकेरे कैसे-कैसे
मिल कर पुरवा से बालू ने
कैसे-कैसे नक़्श निकाले
सहन-ए-खला में सिर्फ़ लहू ने
कितने चेहरों की आवाजें
हम को सुनाई हैं धू-धू ने
बोलना चाहें बोल न पाए
जीभ को थाम लिया तालू ने
थोहर-थोहर उलझे दामन
याद के ज़ख़्म हुए हैं दूने
फिर परदों की क्या पाबन्दी
सब कुछ लफ्ज़ लगे हैं छूने
फैल गया जो कुछ लिक्खा था
आँसू को समझा आँसू ने
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